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  • अलवर

    अलवर

    राजपुत्रों का शहर

    सिलिसर लेक पैलेस

अलवर

राजपुत्रों का शहर

यह शहर राजस्थान का सिंहद्वार है और आदिकाल में मत्स्य देश के नाम से भी जाना जाता है। यहीं पर महाभारत के शक्तिशाली नायक पांडवों ने 13 वर्षों तक निर्वासन के अन्तिम वर्ष बिताए थे। इसकी परम्पराओं को विराटनगर के क्षेत्र में पुनः देखा जा सकता है। इसकी उत्पत्ति 1500 ई. पू. मानी जाती है। हरे भरे, जंगलों, फूलों और लताओं से आच्छादित, अरावली की पहाड़ियों की गोद में बसा अलवर, उत्तम वास्तुकला को दर्शाता है। सुन्दर महल, शांत झील, शाही शिकारगाह, पर्यटकों को अत्यधिक आकर्षित करते हैं।

अलवर में आए और तलाशने के लिए आकर्षण और जगहें

अलवर आएं और अद्भुत और विविध दर्शनीय स्थलों का आनंद लें। देखें, राजस्थान में बहुत कुछ अनूठा देखने को मिलता है।

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  • बाला क़िला

    बाला क़िला

    10वीं सदी में एक पहाड़ी पर मिट्टी के क़िले की नींव रखी गई थी। बाद में इसकी मजबूत क़िलेबन्दी, सुन्दर संगमरमर के स्तम्भ और नाजुक जालीदार छज्जों से सुशोभित कर, इसे दर्शनीय बनाया गया। बाला किला में प्रवेश के लिए छः द्वार हैं - जयपोल, सूरजपोल, लक्ष्मणपोल, चाँदपोल, कृष्णपोल और अंधेरी गेट।

  • अलवर सिटी पैलेस

    अलवर सिटी पैलेस

    अलवर का सिटी पैलेस राजा बख्तावर सिंह द्वारा सन् 1793 ई. में निर्मित किया गया तथा इसकी वास्तुकला में राजपुताना व इस्लामिक शैलियों का सुन्दर समन्वय है। इसके आंगन में कमल के फूल के आकार का संगमरमर का मण्डप है, जो इसे अद्भुत सुन्दरता प्रदान करता है। वर्तमान में इस पैलेस में सरकारी कार्यालय संचालित किए जाते हैं।

  • पैलेस म्यूजियम

    पैलेस म्यूजियम

    शाही शान –शौकत में अभिरुचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पैलेस संग्रहालय अवश्य आना चाहिए। अलवर के महाराजाओं की शानदार जीवन शैली ,सम्राट बाबर के जीवन, रागमाला चित्रों और लघुचित्रों और यहां तक ​​कि ऐतिहासिक तलवारें, जो एक बार मुहम्मद गौरी, सम्राट अकबर और औरंगजेब से संबंधित थी । यहां दुर्लभ पांडुलिपियों भी देखी जा सकती हैं।

  • मूसी महारानी की छतरी

    मूसी महारानी की छतरी

    महाराजा बख़्तावर सिंह की रानी - मूसी रानी की स्मृति में बनाई गई इस छतरी की वास्तुकला में भारतीय व इस्लामिक शैली का मिश्रण है। सफेद संगमरमर से बनी छतरी, इसमें 12 विशाल स्तम्भ तथा 27 अन्य स्तम्भ हैं। इसके आन्तरिक भाग में भगवान श्री कृष्ण, श्री रामचन्द्र जी, लक्ष्मी जी और सीतामाता की छवियां चित्रित हैं। अरावली की पहाड़ियों से घिरी तथा सिटी पैलेस, व सागर झील और मन्दिर के पास यह छतरियाँ शोभायमान हैं। महाराजा बख़्तावर सिंह के जीवन सम्बन्धित चित्रण भी इस छतरी में विद्यमान है।

  • फतेहजंग गुम्बद

    फतेहजंग गुम्बद

    मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के दरबार में मंत्री ख़ानजादा फतेहजंग की स्मृति में यह गुम्बद बनवाया गया था। बलुआ पत्थर से बने इस विशाल गुम्बद में हिन्दू मुस्लिम वास्तुकला के परिचय के साथ, गुम्बदों और मीनारों का संयोजन है। यह पाँच मंजिला गुम्बद एक चौकोर आधार पर स्थित है तथा प्रत्येक मंजिल में दरवाजे और छोटे छोटे झरोखे बने हुए हैं। ऊपरी मंजिल पर चारों कोणों में मीनार और गुम्बद के शिखर पर कमल पंखुड़ीनुमा सरंचना के बीच चार खम्भों की छतरी हैं।

  • पुरजन विहार

    पुरजन विहार

    यह एक हैरिटेज पार्क है तथा पूर्व में कम्पनी गार्डन के नाम से जाना जाता था। अन्य स्थानों की तुलना में अधिक ठण्डा रहने के कारण, इसे महाराजा मंगल सिंह ने सन् 1885 ई. में ’शिमला’ नाम दिया था। गर्मी के मौसम से राहत देने के लिए, यहाँ तरह तरह के पेड़ पौधे तथा फव्वारें लगाए गए हैं। यह गुम्बदनुमा शिमला, धरातल में 25 फुट गहराई में बनाया गया है।

  • भानगढ़

    भानगढ़

    सरिस्का वन्य अभ्यारण्य से पचास कि.मी. दूरी पर भानगढ़ स्थित है। आमेर के महाराजा भगवनदास के पुत्र माधव सिंह ने अपनी प्रथम नगरी के रुप में भानगढ़ की स्थापना की थी। कालान्तर में भानगढ़ के वीरान होने के संबंध में किंवदंतियां तंत्र मंत्रों की हैं। भानगढ़ को भारत में सर्वाधिक रहस्यमयी स्थान होने का गाौरव प्राप्त है। आज भी इस किले के खण्डहरों में सात मंज़िला महल के अवशेष, सुव्यवस्थित बाजार, दुकानें तथा सोमेश्वर महादेव मंदिर, गणेश मंदिर, तालाब नज़र आते हैं। इस क्षेत्र में केवडे़ के पेड़ भी अत्यधिक संख्या में पाए जाते हैं।

  • गर्भाजी झरना

    गर्भाजी झरना

    गर्भाजी झरना / वॉटर फॉल्स विदेशी और स्थानीय पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय स्थान है। चट्टान दर चट्टान नीचे गिरते हुए पानी की तेज धार वाले मनोरम दृश्य से ओतप्रोत यह जगह सुहाना समां बांधती है। लोगों के साथ साथ यह छायाकारों (फोटोग्राफरों) और प्रकृति प्रेमियों के लिए भी मनभावन स्थल है। शहर के कृत्रिम मानव निर्मित संरचनाओं से परे एक प्राकृतिक सुरम्य स्थल की जो खोज कर रहे हैं, उनके लिए भी यह एक आदर्श स्थल है।

  • पहाड़ी क़िला केसरोली

    पहाड़ी क़िला केसरोली

    यदुवंशी राजपूतों द्वारा 14 वीं सदी में बनवाया गया यह क़िला, अपने बुर्ज, प्राचीर और बरामदों के लिए प्रसिद्ध है। वर्तमान में इसे हैरिटेज होटल के रूप में विकसित कर दिया गया है।

  • पांडुपोल

    पांडुपोल

    यह भगवान हनुमान को समर्पित मंदिर है, जहाँ हनुमान जी की मूर्ति लेटी हुई अवस्था में है। सरिस्का अभ्यारण्य के गेट के माध्यम से इस मंदिर की ओर, एक पगडण्डी का रास्ता है। पौराणिक कथा के अनुसार, पांडव भाईयों ने अपने निर्वासन के समय, यहाँ शरण ली थी। पांडुपोल या पांडु द्वार पर भारी चट्टानों के बीच से एक झरना निकलता दिखाई पड़ता है। इस बारे में कहा जाता है कि भीम ने अपनी गदा से यहां मार्ग बनाया था।

  • नीमराना फोर्ट

    नीमराना फोर्ट

    यह ऐतिहासिक क़िला, यदुवंशियों द्वारा बनवाया गया था जो कि भगवान कृष्ण के वंशज माने जाते हैं। यह क़िला राजपूतों से मुगल और फिर जाटों से 1775 में वापस राजपूतों ने जीता था। आज यह एक हैरिटेज होटल के रूप में पूरे भारत में प्रसिद्ध है तथा होटल उद्योग के क्षेत्र में उसका काफी अच्छा नाम है।

  • सिलिसेढ़ झील

    सिलिसेढ़ झील

    अरावली के पश्चिमी छोर पर, पहाड़ों के बीच प्रसिद्ध सिलिसेढ़ झील स्थित है। अलवर से सरिस्का जाते समय, 15 कि.मी. की दूरी पर पर यह झील है। इसका निर्माण महाराजा विनयसिंह ने 1845 ई. में सिलिसेढ बांध के रूप में करवाया था। स्थानीय नदी ’रूपारेल’ की एक शाखा को रोक कर यह झील बनवाई गई थी। इस झील के किनारे, हरी भरी वादियों के बीच, मोती सा चमकता, सिलिसेढ़ लेक पैलेस दिखाई देता है। जिसे राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा हैरिटेज होटल के रूप में संचालित किया जाता है। सिलिसेढ़ झील में पर्यटकों के लिए बोटिंग तथा बर्ड वॉचिंग की भी सुविधा है। सर्दियों में यहाँ विभिन्न प्रजातियों के पक्षी तथा पानी में तैरती बत्तखें व मगरमच्छ पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।

  • सरिस्का टाइगर रिज़र्व

    सरिस्का टाइगर रिज़र्व

    अलवर के सरिस्का क्षेत्र को ’दुनिया का पहला बाघ अभ्यारण्य’ कहा गया है। सन् 1955 में इसे अभ्यारण्य घोषित किया गया था तथा 1979 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। इसका वन क्षेत्र 1203 कि.मी. में है। बाघ के अलावा यहाँ विविध पशु पक्षियों की प्रजातियाँ जैसे - नीलगाय, लोमड़ी, जंगली सुअर, ख़रगोश, तेन्दुआ, चीतल, सांभर, बन्दर पाए जाते हैं। पक्षियोां में जंगल बैबलर, बुलबुल, क्विल, केस्ट्रेड सर्पेन्ट, ईगल, रैड स्परफाउल, सैण्डग्राउज, वुडपेकर आदि पाए जाते हैं। यहाँ पर पर्यटकों के लिए जीप व कैन्टर द्वारा जंगल सफारी की सुविधा उपलब्ध है।

  • तिजारा जैन मन्दिर

    तिजारा जैन मन्दिर

    अलवर दिल्ली मार्ग से लगभग 60 कि.मी. की दूरी पर यह जैन तीर्थ स्थल बना हुआ है। आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्र प्रभा भगवान की स्मृति में यह प्राचीन मन्दिर बनवाया गया था। राजा महासेन और रानी सुलक्षणा के पुत्र ने अपने इस राज्य पर शासन करने के बाद, यहीं पर दीक्षा प्राप्त की थी। कई वर्षों तक मानव सेवा करने के बाद, उन्होंने एक माह तक ध्यान किया तथा निर्वाण प्राप्त किया। मंदिर में भगवान् श्री चंद्र प्रभु की धवल पाषाण की पद्मासन मुद्रा में मनोहारी मूर्ति विराजमान है।

  • मोती डूंगरी

    मोती डूंगरी

    सन् 1882 ई. में यह अलवर के शाही परिवार का निवास स्थल था। सन् 1849 में महाराजा विनय सिंह ने शहर के नज़दीक एक पहाड़ी पर मोती डूंगरी महल बनवाया था। यहाँ से शहर का नयनाभिराम दृश्य देखा जा सकता है। 1928 के बाद महाराजा जयसिंह ने पुराने महल को ध्वस्त कर दिया था। मोती डूंगरी के नीचे की तरफ एक पार्क का निर्माण भी किया गया था। इस पार्क में ख़रगोश, मिनी पिग, हैज-हॉक तथा अन्य कई प्रकार की प्रजातियों के प्राणी यहाँ विचरण करते हैं।

  • तालवृक्ष

    तालवृक्ष

    यह अलवर से 40 कि.मी. की दूरी पर बना वह स्थल है जहाँ मांडव ऋषि ने तपस्या की थी। महाभारत काल के अनुसार, अर्जुन ने अज्ञातवास के दौरान, अपने हथियार तालवृक्ष स्थित एक विशाल वृक्ष के तने में छिपाए थे। सरिस्का वनक्षेत्र के नजदीक होने के कारण, यहाँ अरावली क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पति, ताड़ के लम्बे लम्बे पेड़ तथा जीव-जन्तु विचरण करते हैं। ताल वृक्ष मन्दिर परिसर में दो ठण्डे व गर्म पानी के कुण्ड बने हुए हैं, जहाँ तीर्थयात्री स्नान करते हैं। शाम के समय मंदिर की घंटियों की मधुर ध्वनि, पक्षियों का कलरव तथा बंदरों की उछल कूद, बरबस ही पर्यटकों को आकर्षित करती है।

  • भर्तृहरी मंदिर

    भर्तृहरी मंदिर

    अलवर के लोक देवता भर्तृहरी जी एक राजा थे। उनके जीवन के अन्तिम वर्ष यहीं बीते थे। महाराजा जयसिंह ने 1924 में भर्तृहरी जी के मंदिर को नया स्वरूप दिया। मंदिर में एक अखण्ड ज्योत सदैव प्रज्वलित रहती है। यहाँ मुख्य मेला भाद्रपद की अष्टमी को लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रृद्धालु बाबा भर्तृहरी की आराधना करने आते हैं। पास में ही, हनुमान मंदिर, शिव मंदिर और श्रीराम मंदिर भी स्थित है।

  • नारायणी माता

    नारायणी माता

    अलवर से दक्षिण पश्चिम की ओर, 80 कि.मी. की दूरी पर नारायणी माता को समर्पित यह मंदिर, स्थानीय लोगों में बड़ी मान्यता रखता है। वैशाख माह में यहाँ प्रतिवर्ष एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रृद्धालु दर्शनार्थ आते हैं। यहाँ पर एक गर्म पानी का झरना भी है, जिसमें भक्तगण स्नान करते हैं।

  • नीलकंठ

    नीलकंठ

    सरिस्का से, टहला गेट की ओर लगभग 30 कि.मी. की दूरी पर राजौरगढ में नीलकण्ठ मंदिर स्थित है। किसी समय यहाँ खजुराहो शैली एवं स्थापत्य से प्रभावित अनेक मंदिर थे। पहाड़ियों से घिरे, इस मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर का शिवलिंग है। यहाँ अखण्ड ज्योत जलती रहती है। मंदिर का शिखर भाग उत्तर भारतीय शैली का है और अधो भाग में चारों ओर देवी देवताओं, अप्सराओं, नायक नायिकाओं की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। ब्रह्मा, शिव, विष्णु, सूर्य गणेश, नृसिंह अवतार आदि की मूर्तियाँ, पौराणिक कथाओं को कलात्मक स्वरूप में अभिव्यक्त करती हैं। नीलकंठ मंदिर से कुछ दूरी पर जैन तीर्थंकर शान्तिनाथ जी की विशाल मूर्ति है, जिसे स्थानीय लोग ’नौ ग़ज़ा’ भी कहते है, क्योंकि यह 6 फुट ऊँची व 6 फुट चौड़ी है। प्रतिमा के सिर के पीछे एक प्रभामण्डल शोभायमान है। मंदिर के खण्डहरों में नृत्यांगनाओं, अप्सराओं, देवी देवताओं, हाथियों आदि की मूर्तियाँ और अवशेष दर्शनीय हैं। जैन और शैव मंदिरों का पास पास होना, मिली जुली संस्कृति का परिचायक है।

  • नन्देश्वर तीर्थस्थल

    नन्देश्वर तीर्थस्थल

    यह एक पुराना शिव मंदिर है तथा अलवर से दक्षिण की ओर, 24 कि.मी. की दूरी पर यह मंदिर चट्टानी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इन पहाड़ियों से बरसात के मौसम में प्राकृतिक झरनों से कलकल करता पानी, दो तालाबों में आता है। बेहद सुरम्य, शांतिपूर्ण और प्रकृति के सौन्दर्य से परिपूर्ण यह तीर्थस्थल, पर्यटकों तथा भक्तों के लिए स्वर्ग समान है।

  • नीमराना बावड़ी

    नीमराना बावड़ी

    किसी ज़माने में बावड़ियाँ वर्षा का जल एकत्र करने, पर्दे में स्त्रियों के नहाने तथा जल की कमी होने पर जलापूर्ति के लिए बनवाई जाती थीं। नीमराना बावड़ी, दिल्ली जयपुर हाइवे से लगभग 3 कि.मी. दूर स्थित है। 1740 ई. में राजा माहसिंह देव ने यह नौ मंज़िला भूमिगत बावड़ी बनवाई थी। इसकी प्रत्येक मंजिल में छोटे छोटे कमरे बने हैं। इसकी नौ में से दो मंज़िलें पानी में डूबी रहती थीं। प्रत्येक मंज़िल की ऊँचाई लगभग 20 फुट है।

अलवर के उत्सव और परम्पराओं के आंनद में सम्मिलित हों। राजस्थान में हर दिन एक उत्सव है।

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अलवर में गतिविधियाँ, पर्यटन और रोमांच आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। राजस्थान में करने के लिए सदैव कुछ निराला है।

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  • बाला क़िला बफर जोन (आघात के रक्षक क्षेत्र) सफारी

    बाला क़िला बफर जोन (आघात के रक्षक क्षेत्र) सफारी

    अलवर शहर का बाला क़िला एक प्रमुख क़िला है जो कि घने जंगलों से चारों तरफ से घिरा हुआ है। यह क्षेत्र फूलों और पेड़-पौधों से भरपूर, अरावली परिस्थितिकी तंत्र की, जैव विविधता का प्रतिनिधित्व करता है। घने जंगलों के बीच इस क्षेत्र में बहुत से विरासती भवन हैं जो कि अपने राजसी अतीत को दर्शाते हैं, उन में सूरज कुण्ड, माटिया कुण्ड और सलीम सागर हैं। बाला क़िला से सफारी रूट पर जाने पर, आपको पहाड़ों और जंगलों में घूमने का आश्चर्यचकित कर देने वाला अवसर प्राप्त होगा। इस क्षेत्र में सांभर, हिरण, हाइना, चीता और चिड़ियों की विभिन्न प्रजातियां देखने को मिलती हैं। अलवर शहर में बाला क़िला का चित्रमय, सुरम्य और प्रकृति मनोहारी दृश्य, उसकी क़िलेबन्दी, अरावली की पर्वतमाला और प्राचीन शिलाओं के विभिन्न रूप देखने के लिए इस जगह आना और सैर करना बड़ा महत्वपूर्ण है। सफारी का समय: सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक।

यहाँ कैसे पहुंचें

यहाँ कैसे पहुंचें

  • Flight Icon सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा, नई दिल्ली का इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो कि अलवर से 122 कि.मी. की दूरी पर है। जयपुर का अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा अलवर से 160 कि.मी. की दूरी पर है।
  • Car Icon अलवर के लिए सभी मुख्य शहरों से नियमित बसें उपलब्ध हैं।
  • Train Icon दिल्ली से जयपुर आने जाने वाली सभी ट्रेनें, अलवर स्टेशन पर रूकती हैं। शताब्दी एक्सप्रेस तथा डबल डैकर ट्रेन पर्यटकों के लिए सुविधाजनक हैं।

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अलवर के समीप देखने योग्य स्थल

  • जयपुर

    160 कि.मी.

  • अजमेर

    293 कि.मी.

  • भरतपुर

    120 कि.मी.