बूंदी
सागर, कुण्ड और बावड़ियों का शहर
सुख, चैन और सु़कून मिला तो नोबेल पुरस्कार विजेता रूडयार्ड किपलिंग ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘‘किम’’ का कुछ अंश, बून्दी में बैठकर लिखा। उन्होंने लिखा है - "जयपुर पैलेस, पेरिस के महल से कम नहीं है....,जोधपुर हाउस में ताल मेल की कमी...., लाल चट्टानों पर भूरे रंग के ऊँचे बुर्ज, लगता है किसी जिन्न का काम है परन्तु बूंदी पैलेस, दिन के उजाले में भी, ऐसा लगता है कि मनुष्य ने अपने अधूरे सपने सजाए हैं..., भूतों का काम लगता है, मनुष्य का नहीं। परी कथा और सिन्ड्रेला के ज़माने जैसा महल और क़िला बून्दी का आकर्षण सदियों बाद भी कम नहीं हुआ है। " कोटा से 36 कि.मी. की दूरी पर, नवल सागर में प्रतिबिंबित बूंदी का क़िला और महल - ऐसा दृश्य जो सिर्फ सपनों में नजर आता है। ऐसा रमणीय नगर, अपनी समृद्ध ऐतिहासिक संपदा से भरपूर है। हरे भरे, बड़े बड़े आम के पेड़, अमरूद, अनार, नारंगी और तरह तरह के फल फूलों की लताएं, बाग़ बगीचे, तपती धूप और गर्मी से राहत पाने का सारा सामान यहाँ है। लहलहाते चावल, गेहूँ कपास के खेत, बूंदी को समृद्ध बनाते हैं। बूंदी कभी हाड़ा चौहानों द्वारा शासित हाड़ौती साम्राज्य की राजधानी था। 1624 ई. में कोटा से अलग किया गया और स्वतंत्र ज़िला बन गया। आज भी बूंदी का भव्य क़िला, महल, नक़्काशीदार जालीदार झरोखे, स्तम्भ, गर्मी में घरों को ठण्डा रखने के डिज़ायन, जोधपुर से मिलते जुलते हल्के नीले रंग के मकान, इसे अन्य शहरों से अलग आभास दिलाते हैं।