बूंदी
कुण्ड और बावड़ियों का शहर
जैसे ही सुख, चैन और सु़कून मिला तो नोबेल पुरस्कार विजेता रूडयार्ड किपलिंग ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘‘किम’’ का कुछ अंश, बून्दी में निवास करते समय लिखा। उन्होंने लिखा है - "जयपुर पैलेस, पेरिस के महल से कम नहीं है....,जोधपुर हाउस में तालमेल की कमी...., लाल चट्टानों पर भूरे रंग के ऊँचे बुर्ज, लगता है किसी जिन्न का काम है, परन्तु बूंदी पैलेस, दिन के उजाले में भी, ऐसा लगता है कि मनुष्य ने अपने अधूरे सपने सजाए हैं. इसका निर्माण मानव निर्मित नहीं किसी जिन्न के द्वारा किया गया हैI परीकथा और सिन्ड्रेला के ज़माने जैसा महल और क़िले से बून्दी का आकर्षण सदियों बाद भी कम नहीं हुआ है।" कोटा से महज 36 कि.मी. की दूरी पर, नवल सागर में प्रतिबिंबित दिखने वाला बूंदी का क़िला और महल - ऐसा दृश्य जो सिर्फ सपनों में नजर आता है। ऐसा रमणीय नगर, अपनी समृद्ध ऐतिहासिक संपदा से भरपूर है। हरे-भरे बड़े-बड़े आम व अमरूद के पेड़ तरह तरह के फल फूलों के बाग़-बगीचे, गर्मी से राहत पाने के लिए काफी है। लहलहाते चावल व गेहूँ के खेत बूंदी को समृद्ध बनाते हैं। बूंदी कभी हाड़ा चौहानों द्वारा शासित हाड़ौती साम्राज्य की राजधानी था। 1631 ई. में कोटा अलग हुआ और स्वतंत्र रियासत बन गया। आज भी बूंदी का भव्य क़िला, महल, नक़्काशीयुक्त जालीदार झरोखे, स्तम्भ, गर्मी में घरों को ठण्डा रखते हैं I जोधपुर से मिलते जुलते हल्के नीले रंग के मकान बूंदी शहर को अन्य शहरों से अलग होने का आभास दिलाते हैं।
 
				
            






 
                 
    



















 
             
                     
                    
 
                         
                        